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‘ रजाकार’ किसी मजहब के खिलाफ फिल्म नहीं, बल्कि अत्याचारों पर बेस्ड है वह, बेरहम हकीकत को दिखाती है, इतिहास सदा क्रूरताओं से कुख्यात होता रहा है : मकरंद देशपांडे

Writer's picture: Ramachandran SrinivasanRamachandran Srinivasan

अनुभवी कलाकार मकरंद देशपांडे की अपकमिंग फिल्म ‘ रजाकार : द साइलेंट जेनोसाइड ऑफ हैदराबाद ’ है। इसमें वह हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान की भूमिका में हैं। फिल्म में निजाम को देश की आजादी के फौरन बाद अत्याचारी शासक के तौर पर दिखाया गया है, जिसकी ख्वाहिश हैदराबाद को भारत में विलय नहीं होने देना है। उसकी खातिर उनके शासनकाल में रजाकारों ने जनता पर जुल्मों सितम ढाए थे। हिंदुओं के नरसंहार हुए थे। रज़ाकार एक फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ स्वयंसेवक होता है। फिल्म में रजाकारों के प्रमुख का रेाल राज अर्जुन ने प्ले किया है। रजाकार के तौर पर उन्हें जुल्मोंसितम ढाने के लिए निजाम का फ्री हैंड मिला हअुा था। ऐसा मेकर्स का दावा है।

मकरंद के मुताबिक, ‘ फिल्म में ऐसी कहानी है, जो बेरहम हकीकत को दिखाती है। देखा जाए हिस्ट्री सदा क्रूरताओं से मार्क होता रहा है। ज्यादातर देशों की हिस्ट्री वैसी ही रही है, जहां इतिहास रक्त रंजित रहा , क्योंकि मसला सर्वाइवल का था। साइंस का भी देखा जाए तो उसकी तकनीक का इस्तेमाल शुरू में वॉर के लिए होता रहा। बाद में उसका इस्तेमाल एनर्जी में हुआ। जैसे ऐटम बम बना तो उसका यूज पहले वॉर में हुआ, फिर बाद में एनर्जी जेनरेट होने के लिए होता रहा। तो हमारी फिल्म में भी वॉर, सरवाइवल, रिलीजन के चलते क्रूर वाकये हुए। पर फिल्म में सिर्फ हिंदुओं के ही नरसंहार नहीं दिखाए गए हैं। उसमें वैसे मुस्लिमों के भी हाथ काटते दिखाए गए, जो अगर रजाकारों के खिलाफ थे। तो यह किसी मजहब के खिलाफ वाली फिल्म नहीं है। ’

मकरदं का दावा है कि फिलम के फर्स्ट हाफ में शायद कहानी एंटी मुस्लिम लगे, मगर दूसरे हाफ में लगेगा कि कहानी तो अत्याचारियों की है, जिनका कोई मजहब नहीं होता।

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